New vs Old Tax Regime: टैक्स रिजीम चुनने के लिए बचे हैं बस कुछ दिन, नौकरी वाले ले लें फैसला वर्ना होगा बड़ा नुकसान
New vs Old Tax Regime: फाइनेंशियल ईयर 2023-24 से न्यू टैक्स रिजीम को ही डिफॉल्ट टैक्स रिजीम बना दिया गया है. और सैलरीड प्रोफेशनल्स के पास अभी मौका है कि वो अपनी टैक्स रिजीम चुन लें.
New vs Old Tax Regime: इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने का टाइम शुरू हो रहा है और इस बार टैक्सपेयर्स को एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. फाइनेंशियल ईयर 2023-24 से न्यू टैक्स रिजीम को ही डिफॉल्ट टैक्स रिजीम बना दिया गया है. और सैलरीड प्रोफेशनल्स के पास अभी मौका है कि वो अपनी टैक्स रिजीम चुन लें. यूं तो न्यू टैक्स रिजीम को साल 2020 में ही लॉन्च किया गया था, लेकिन इसके फीचर्स को देखते हुए बड़ी संख्या में टैक्सपेयर्स ओल्ड टैक्स रिजीम में ही टैक्स फाइल कर रहे थे, लेकिन बजट 2023 में बजट को लेकर कई बड़ी घोषणाएं हुई हैं, जिसमें इसी रिजीम को डिफॉल्ट टैक्स रिजीम बनाने का फैसला लिया गया.
डिफॉल्ट टैक्स रिजीम का क्या मतलब है?
सरकार ने टैक्सपेयर्स को ज्यादा विकल्प और सुविधा देने के लिए दो टैक्स रिजीम रखने का फैसला किया था. टैक्सपेयर्स के पास अब भी ऑप्शन है कि वो किसी भी टैक्स रिजीम में टैक्स रिटर्न फाइल करें. हालांकि, सिस्टम के लिए किसी एक टैक्स रिजीम का डिफॉल्ट होना जरूरी है. जैसे कि टैक्स फाइलिंग पोर्टल और टैक्स कैलकुलेटर वगैरह के लिए किसी एक टैक्स रिजीम को ही डिफॉल्ट रखा जाता है. अगर आपको दूसरी रिजीम के तहत टैक्स फाइल करना हो तो आपको इसे अलग से चुनना होगा.
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टैक्स रिजीम चुनना क्यों है जरूरी?
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सैलरीड इंप्लॉई को अपना टैक्स रिजीम इसलिए चुनना जरूरी है क्योंकि वो जो भी रिजीम चुनेगा, उसका टैक्स उसी के तहत कैलकुलेट होगा. अब जैसाकि टैक्स सेविंग के लिए अभी तक जो टैक्सपेयर ओल्ड टैक्स रिजीम में टैक्स फाइल करते आ रहे थे, उनको अब न्यू टैक्स रिजीम डिफॉल्ट तौर पर मिलेगा, ऐसे में उन्हें खुद से ये बताना होगा कि वो ओल्ड में भरेंगे, जिसके बाद पोर्टल पर उन्हें ओल्ड टैक्स रिजीम में आईटीआर भरने की सुविधा मिलेगी. अभी तक किसी को न्यू टैक्स रिजीम में भरना होता था, तो इसे अलग से चूज़ करना पड़ता था.
अगर टैक्स रिजीम नहीं चुनते हैं तो?
अगर आप खुद से अपने इंप्लॉयर को यह नहीं बताते हैं कि आप किस रिजीम में टैक्स फाइल करेंगे तो वो आपका टैक्स अपने आप न्यू टैक्स रिजीम में कैलकुलेट करेगा. यानी कि अगर आप टैक्स प्लानिंग के हिसाब से जो निवेश कर रहे हैं या बचत कर रहे हैं, उसपर आप टैक्स छूट क्लेम नहीं कर पाएंगे, क्योंकि ओल्ड रिजीम में 80C और दूसरी ऐसी धाराओं में जो टैक्स छूट पाते हैं, न्यू टैक्स रिजीम में वो उपलब्ध नहीं हैं. न्यू रिजीम में आपको स्टैंडर्ड डिडक्शन, रिबेट और कुछ ऐसे ही अन्य छूट मिलते हैं. टीडीएस भरने वाले टैक्सपेयर्स का टैक्स न्यू टैक्स रिजीम के टैक्स स्लैब के आधार पर कटेगा, ऐसे में आपको ध्यान से रिजीम चुनकर टैक्स भरना होगा.
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क्यों रिजीम चुनने के लिए टाइम नहीं बचा है?
सैलरीड प्रोफेशनल्स के पास टाइम है कि वो अप्रैल में अपने इंप्लॉयर को अपना विकल्प बता दें. सैलरीड टैक्सपेयर्स को हर फाइनेंशियल ईयर में अपना टैक्स रिजीम चुनना होता है. आमतौर पर कंपनियां अप्रैल में या इसके पहले ही इंप्लॉई से इन्वेस्टमेंट डेक्लेरेशन मांगने लगती हैं. इसी दौरान आपको ये भी बताना होता है कि आप किसी रिजीम के तहत टैक्स भरेंगे. अप्रैल के आखिरी हफ्तों या मई की शुरुआत से टैक्स फाइलिंग शुरू हो जाती है, जिससे कि फिर आपके पास मौका नहीं बचता. और वैसे भी अगर आप एक वित्तवर्ष में जो भी रिजीम चुन लेंगे, वो अगले साल तक नहीं बदल सकते.
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